गर्भावस्था – मासानुमासिक परिचर्या
February 1, 2020 | Blog
गर्भिणी की मासानुमासिक परिचर्या
पहला महीना - आहार और विहार
- प्रतिदिन नियमित रूप से इच्छानुसार मात्रा में दूध लें।
- हल्का व आसानी से पचने वाला अनुकूल आहार का प्रयोग करें।
- वमन की अवस्था में अपच और निर्जलीकरण की स्थिति से बचने के लिए मीठे, ठंडे और तरल आहार का प्रयोग करें।
- मौसमी आदि पथ्य फलों के जूस का सेवन करें।
- मुलैठी, अश्वगन्धा का चूर्ण समान मात्रा में तथा देवदारु का कल्क 3 - 6 ग्राम की मात्रा में एक गिलास दूध में इच्छानुसार चीनी मिलाकर दिन में एक बार सेवन करें।
दूसरा महीना - आहार और विहार
- हल्का व आसानी से पचने वाला अनुकूल आहार का प्रयोग करें।
- अंगूर, अनार और संतरें जैसे फल एवं इनके जूस का प्रयोग करें।
- शतावरी, अश्वगंधा, मुलैठी एवं खर्जुर के चूर्ण को समान मात्रा में लेकर दूध में उबालकर इच्छानुसार चीनी मिलाकर पिएं।
तीसरा महीना - आहार और विहार
- गाजर, चुकुंदर, हरी पत्तेदार सब्जियां और फलों में सेब, अंगूर आदि को प्रतिदिन भोजन में शामिल करें।
- घी और शहद के साथ दूध पिएं।
- दाल और लोबिया से बनी खिचड़ी / लाभकारी है।
- सारिवा, महुए के फूल व शतावरी का 5 - 10 ग्राम चूर्ण या कल्क का सेवन दूध में इच्छानुसार चीनी मिलाकर रोजाना एक बार पिएं।
चौथा महीना - आहार और विहार
- शश्ठी चावल का दही के साथ सेवन करें।
- इच्छानुसार मात्रा में दूध का सेवन करें।
- प्राकृतिक रूप (दही से निकाला गया) से बनाया गया ५ ग्राम मक्खन दिन में एक बार लें।
- सारिवा, रास्ना, मुलैठी के 5 - 10 ग्राम चूर्ण या कल्क का सेवन प्रतिदिन एक बार दूध में इच्छानुसार चीनी मिलाकर करें।
पाँचवा महीना - आहार और विहार
- घी और दूध का प्रयोग करें।
- ब्राह्मी, कण्टकारी, गम्भारी, न्यग्रोध, उदुम्बर, अश्वत्थ, पारिश, प्लक्ष व दालचीनी के 5 - 10 ग्राम चूर्ण या कल्क का सेवन प्रतिदिन एक बार दूध में इच्छानुसार चीनी मिलाकर करें।
छठा महीना - आहार और विहार
- प्रतिदिन प्रातःकाल में गोक्षुर के दरदरे चूर्ण या कल्क से साधित घी को 5 से 10 ग्राम की मात्रा में उश्ण जल या दूध के साथ लें।
- चावल के 1 भाग के साथ 1/4 भाग मूंग की दाल, 6 भाग पानी की खिचड़ी बनाकर एक चुटकी नमक, अदरक, हल्दी और 5 - 10 ग्राम गोक्षुर का चूर्ण मिलाकर पकाएं। इसे दिन में एक बार खाने से लाभ होगा।
सातवाँ महीना - आहार और विहार
- सिंगाड़ा, कमलकन्द, मुनक्का, मुलैठी व मिश्री के 5 - 10 ग्राम चूर्ण या कल्क को दूध में उबालकर इच्छानुसार चीनी मिलाकर दिन में एक बार लें।
- नीम की पत्तियां, बेर, तुलसी एवं मजिश्ठा के कल्क को पेट पर लगाने से कण्डु (खाज) और उदर पर होने वाले निशानों से बचा जा सकता है।
आठवाँ महीना - आहार और विहार
- हल्का व आसानी से पचने वाला खाना घी के साथ खाएं।
- पेट के निचले हिस्से में दर्द से बचने लिए कब्ज़ न हो इसका ध्यान रखें और नियमित रूप से शौच आदि से निवृत्त हों।
- थोड़ी चहलकदमी करते रहें और मानसिक शांति बनाएं रखें।
- कपित्थ (कैथ), बृहती, बिल्व, पटोल, इक्षु (गन्ना), कण्टकारी के समभाग दरदरे चूर्ण के साथ दूध को साधित करके इस दूध का एक गिलास इच्छानुसार चीनी मिलाकर प्रातःकाल प्रतिदिन एक बार पिएं।
नौवा महीना - आहार और विहार
- हल्का व आसानी से पचने वाला भोजन घी मिलाकर खाएं।
- पेट में दर्द जैसी स्तिथि से बचने लिए कब्ज न हो इसका ध्यान रखें और नियमित रूप से शौच आदि से निवृत्त हों।
- थोड़ी चहलकदमी करते रहे और मानसिक शांति बनाएं रखें।
- 5 से 10 ग्राम मुलैठी, अश्वगंधा एवं सारिवा का चूर्ण या कल्क एक गिलास दूध से साथ इच्छानुसार चीनी मिलाकर प्रतिदिन एक बार पीएं।
- अथवा
- इस माह के आखिरी दिनों में शुण्ठी एवं अश्वगंधा से साधित दूध एक कप की मात्रा में इच्छानुसार चीनी मिलाकर प्रतिदिन एक बार लेना लाभदायक होगा।
- योनिमार्ग के स्नेह के लिए प्रतिदिन संध्याकाल में एक बार महानारायण तैल का योनिपीचु धारण करें। इससे सामान्य प्रसव तथा प्रसव के बाद योनि तथा प्रजनन अंगो से स्वस्थ होने में सहायता मिलती है।
- वातहर द्रव्यों से यथा निर्गुन्डी, एरण्ड आदि से साधित जल से स्नान करें।