25 जून को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय विटिलिगो दिवस मनाया जाता है. इस दवा को विकसित करने वाले डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हेमंत पांडे ने इस मौके पर इस दवा के बारे में विस्तार से बताया है.
देश के प्रमुख रक्षा शोध संगठन ‘डीआरडीओ’ की ओर से विकसित की गई सफेद दाग की हर्बल दवा मरीजों के लिए रामबाण साबित हो रही है. यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि भारत में इस बीमारी की वजह से मरीज सामाजिक रूप से शर्म महसूस करते हैं.
दरअसल, सफेद दाग की दवा ल्यूकोस्किन के लाभ को देखते हुए मोदी सरकार ने इसे विकसित करने वाले डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हेमंत पांडे को पिछले महीने राष्ट्रीय तकनीक दिवस के मौके पर प्रतिष्ठित ‘विज्ञान पुरस्कार’ से सम्मानित किया था.
25 जून को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय विटिलिगो दिवस मनाया जाता है. वैज्ञानिक डॉ. हेमंत पांडे इस मौके पर इस दवा के बारे में विस्तार से बताया है. डॉ. पांडे इस समय डीआरडीओ की पिथौरागढ़ स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ बायो एनर्जी रिसर्च (डिबियर) के हर्बल औषधि विभाग के प्रमुख हैं.
उनके अनुसार, इस समय विटिलिगो के कई तरह के इलाज हैं, जिनमें एलोपैथिक दवाएं, ऑपरेशन और मूल उपचार के साथ दी जाने वाली अजंग्टिव थेरेपी शामिल है लेकिन इस बीमारी के निदान में इनमें से किसी भी उपाय के संतोषजनक नतीजे नहीं आ रहे हैं. साथ ही ये इलाज या तो बहुत महंगे हैं या उनसे उनसे लाभ बहुत कम होता है और साइड इफेक्ट भी होते हैं.
डॉ. पांडे ने बताया इसलिए हमने इस बीमारी के कारणों पर ध्यान केंद्रित किया और सफेद दाग या विटिलिगो के प्रबंधन का एक व्यापक फॉर्मूला विकसित किया. हमने हिमालय में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया. उन्होंने यह भी बताया कि ल्यूकोस्किन मलहम और मुंह से ली जाने वाली ओरल लिक्विड दोनों ही स्वरूप में उपलब्ध है. डॉ. पांडे के अनुसार, दुनिया भर में 1 से 2 फीसदी लोगों को ही सफेद दाग होता है लेकिन भारत में यह 4 से 5 फीसदी लोगों को हो रहा है.
आयुर्वेद की विशेषज्ञ डॉ. नीतिका कोहली के अनुसार, मलहम में सात जड़ी-बूटियों का उपयोग किया गया है. इनमें स्किन फोटो सेंसिटाइजर, फोड़े-फूंसी रोधक, जलन और खुजली रोधक, रोगाणु रोधक, जख्म भरने वाले और कॉपर सप्लिमेंटिंग तत्व शामिल हैं.