Author: Aimil
अमेरिका ने आयुर्वेद का लोहा माना
Proper diet is key to preventing chronic kidney ailments
गुर्दे की बीमारियों को ठीक करने आयुर्वेद के कई फार्मूले कारगर
यह आयुर्वेदिक फार्मूला है लेकिन इसके इस्तेमाल से गुर्दा रोगियों में बड़ा सुधार देखा गया है. 'नीरी केएफटी' रक्त में सीरम क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड तथा इलेक्ट्रोलेट्स के स्तर में सुधार करता है. इसलिए आजकुल गुर्दा रोगियों द्वारा बड़े पैमाने पर इसे टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
नेशनल किडनी फाउंडेशन एंड द एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशियन डाइटिक्स ने गुर्दे के मरीजों के लिए 'मेडिकल न्यूट्रीशियन थैरेपी' की सिफारिश की है. फाउंडेशन का कहना है कि यदि गुर्दा रोगियों को हर्बल पदार्थो से परिपूर्ण और बेहतर आहार मिले तो बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है.
इस बारे में सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट मनीष मलिक कहते हैं कि यह सिफारिश महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि हाल में 'अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च' में एक भारतीय आयुर्वेदिक फार्मूले 'नीरी केएफटी' को गुर्दे के उपचार में उपयुक्त पाया गया.
यह आयुर्वेदिक फार्मूला है लेकिन इसके इस्तेमाल से गुर्दा रोगियों में बड़ा सुधार देखा गया है. 'नीरी केएफटी' रक्त में सीरम क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड तथा इलेक्ट्रोलेट्स के स्तर में सुधार करता है. इसलिए आजकुल गुर्दा रोगियों द्वारा बड़े पैमाने पर इसे टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
नीरी केएफटी को 'एमिल फार्मास्युटिकल' द्वारा तैयार किया गया है. एमिल के अध्यक्ष कहते हैं कि इसमें पुनर्नवा नामक एक ऐसी बूटी है जो गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी ठीक करती है.
शिकागो स्थित 'लोयोला विश्वविद्यालय' के अध्ययनकर्ता डॉ. होली क्रमेर ने कहा कि ज्यादातर मरीजों को पता नहीं होता कि बीमारियों को नियंत्रित रखने में भोजन की क्या भूमिका है इसलिए अब आहार को गुर्दे की बीमारी के उपचार का हिस्सा बनाया जा रहा है.
'पुदुच्चेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज' के प्रोफेसर एवं नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जी. अब्राहम भी इस शोध की पुष्टि करते हैं. उन्होंने एक शोध में पाया कि 42-77 फीसदी गुर्दा रोगी कुपोषण के शिकार थे.
दरअसल, गुर्दे की बीमारी के चलते वह पर्याप्त भोजन नहीं ले रहे थे. कुछ अपनी मर्जी से तो कुछ घरवालों की सलाह पर ऐसा कर रहे थे. अब्राह्म कहते हैं कि यदि ऐसे मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तथा उन्हें उचित पोषाहार मिले तो बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है.
kidney disease के उपचार में उचित आहार व हर्बल फार्मूले कारगर
अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च' में एक भारतीय आयुर्वेदिक फार्मूले 'नीरी केएफटी' को गुर्दे के उपचार में उपयुक्त पाया गया…
गुर्दे से जुड़ी बीमारियों में जहां संतुलित आहार जरूरी है, वहीं आयुर्वेद के कई फार्मूले भी कारगर पाए गए हैं। इसलिए 'नेशनल किडनी फाउंडेशन एंड द एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशियन डाइटिक्स' ने गुर्दे के मरीजों के लिए 'मेडिकल न्यूट्रीशियन थैरेपी' की सिफारिश की है। फाउंडेशन का कहना है कि यदि गुर्दा रोगियों को हर्बल पदार्थो से परिपूर्ण और बेहतर आहार मिले तो बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट मनीष मलिक कहते हैं कि यह सिफारिश महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि हाल में 'अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च' में एक भारतीय आयुर्वेदिक फार्मूले 'नीरी केएफटी' को गुर्दे के उपचार में उपयुक्त पाया गया। यह आयुर्वेदिक फार्मूला है लेकिन इसके इस्तेमाल से गुर्दा रोगियों में बड़ा सुधार देखा गया है। 'नीरी केएफटी' रक्त में सीरम क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड तथा इलेक्ट्रोलेट्स के स्तर में सुधार करता है। इसलिए आजकुल गुर्दा रोगियों द्वारा बड़े पैमाने पर इसे टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
नीरी केएफटी को 'एमिल फार्मास्युटिकल' द्वारा तैयार किया गया है। एमिल के अध्यक्ष कहते हैं कि इसमें पुनर्नवा नामक एक ऐसी बूटी है जो गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी ठीक करती है।
शिकागो स्थित 'लोयोला विश्वविद्यालय' के अध्ययनकर्ता डॉ. होली क्रमेर ने कहा कि ज्यादातर मरीजों को पता नहीं होता कि बीमारियों को नियंत्रित रखने में भोजन की क्या भूमिका है इसलिए अब आहार को गुर्दे की बीमारी के उपचार का हिस्सा बनाया जा रहा है।
'पांडिचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज' के प्रोफेसर एवं नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जी. अब्राहम भी इस शोध की पुष्टि करते हैं। उन्होंने एक शोध में पाया कि 42-77 फीसदी गुर्दा रोगी कुपोषण के शिकार थे।
दरअसल, गुर्दे की बीमारी के चलते वह पर्याप्त भोजन नहीं ले रहे थे। कुछ अपनी मर्जी से तो कुछ घरवालों की सलाह पर ऐसा कर रहे थे। अब्राह्म कहते हैं कि यदि ऐसे मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तथा उन्हें उचित पोषाहार मिले तो बीमारी को बढऩे से रोका जा सकता है।
आयुष के आरोग्य केंद्रों पर भी मिलेगा किडनी, डायबिटीज का इलाज
इन आरोग्य केंद्रों में आयुर्वेद के साथ यूनानी, सिद्घा और होमियोपैथी का उपचार मिल सकेगा. वहीं सूत्रों की मानें तो किडनी और मधुमेह के रोगियों को निशुल्क उपचार मिलेगा.
अब किडनी की बीमारी और डायबिटीज से जूझ रहे लोगों को अस्पतालों में भटकना नहीं पड़ेगा. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि केंद्र सरकार ने अब आयुष मंत्रालय के आरोग्य केंद्रों की स्थापना पर काम तेज कर दिया है.
मिली जानकारी के अनुसार, पिछले चार वर्षों में 1185 आरोग्य केंद्रों की स्थापना को मंजूरी भी दी है. इस साल की बात करें तो अभी तक 214 आरोग्य केंद्र विभिन्न राज्यों में खोले जाने के निर्देश दिए हैं. इनमें भी सर्वाधिक उत्तर प्रदेश को 50 केंद्रों की इजाजत मिली है.
इन आरोग्य केंद्रों में आयुर्वेद के साथ यूनानी, सिद्घा और होमियोपैथी का उपचार मिल सकेगा. वहीं सूत्रों की मानें तो किडनी और मधुमेह के रोगियों को निशुल्क उपचार मिलेगा.
गौरतलब है कि देश में हर साल किडनी और डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढती जा रही है. जिसे देखते हुए आयुष मंत्रालय ने डीआरडीओ और सीएसआईआर के शोधों पर अनुमति दी थी. इसके बाद किडनी डायलिसिस के लिए नीरी केएफ्टी और मधुमेह के लिए बीजीआर-34 दवाएं बनाईं गईं.
हिमाचल की औषधियों पर शोध से तैयार हुई दवा…
एमिल फॉर्मास्यूटिकल की निगरानी में हिमाचल की औषधियों पर शोध के बाद तैयार इन दवाओं का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों को देने की तैयारी है. इसके अलावा यहां पंचकर्म का भी लाभ मिल सकेगा.
इस बारे में मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय आयुष मिशन को शुरु करते हुए विभिन्न राज्यों में आरोग्य केंद्रों की स्थापना का फैसला लिया था. तब से लेकर अब तक 1185 केंद्रों को मंजूरी मिल चुकी है.
यहां आयुर्वेद, यूनानी, योग और होमियोपैथी का उपचार मिल सकेगा. चूंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है. इसलिए इन केंद्रों को संचालित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की तय की है. उन्होंने बताया कि केंद्र की ओर से इन राज्यों को आरोग्य केंद्र की स्थापना के लिए सहायता दी गई है.
दिल्ली में बनेगा राष्ट्रीय होमियोपैथी संस्थान, 4 वर्षों में 1185 केंद्रों को मिली मंजूरी
देश में आयुष चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में तीन बड़े फैसले लिए हैं। सरकार ने किडनी और मधुमेह जैसी बीमारियों से परेशान मरीजों को राहत देते हुए आरोग्य केंद्रों की स्थापना पर काम तेज कर दिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले चार वर्षों में 1185 आरोग्य केंद्रों की स्थापना को मंजूरी दी है। वहीं आयुष मंत्रालय ने अगले दो वर्षों के लिए किसी भी आयुर्वेद, यूनानी और होमियोपैथी शैक्षणिक संस्थान के लिए नए आवेदन नहीं लेने का फैसला किया है।मंत्रालय की मानें तो अभी तक उनके पास पहले से ही कई कॉलेजों के आवेदन लंबित हैं। इसके अलावा देश की राजधानी में मंत्रालय ने राष्ट्रीय होमियोपैथी संस्थान की स्थापना की मंजूरी दी है। ये संस्थान वर्ष 2020 तक दिल्ली के नरेला में बनाया जाएगा।
दरअसल देश में हर साल बढ़ रहे किडनी और मधुमेह रोगियों की संख्या को देखते हुए कुछ समय पहले आयुष मंत्रालय ने डीआरडीओ और सीएसआईआर के शोध किडनी के लिए नीरी केएफ्टी और मधुमेह के लिए बीजीआर-34 दवाएं बनाईं। एमिल फॉर्मास्यूटिकल की निगरानी में इन दवाओं का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों को देने की तैयारी है।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय आयुष मिशन को शुरु करते हुए विभिन्न राज्यों में आरोग्य केंद्रों की स्थापना का फैसला लिया था। तब से लेकर अब तक 1185 केंद्रों को मंजूरी मिल चुकी है। उन्होंने ये भी बताया कि कोलकाता में देश का सबसे बड़ा होमियोपैथी संस्थान है। उसी के विस्तार के रुप में दिल्ली के नरेला में राष्ट्रीय होमियोपैथी संस्थान बनाने की मंजूरी दी है।
आयुष नाम का नहीं ले सकेंगे फायदा
मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो आयुष नाम के गलत इस्तेमाल को लेकर भी शिकायतें तेजी से बढने लगी हैं। इसे देखते हुए मंत्रालय ने ड्रग कंट्रोल ऑफ इंडिया को सतर्क भी किया है। साथ ही किसी भी तरह का आयुष ट्रेडमार्क मंत्रालय बर्दास्त नहीं करेगा।
आरोग्य केंद्रों की राज्यवार स्थिति
प्राप्त जानकारी के अनुसार, आयुष मंत्रालय ने केंद्र शासित सहित 36 राज्यों में वर्ष 2014 के दौरान 57, 2015 में 211, 2016 में सर्वाधिक 487, 2017 में 216 और 2018 में अभी तक 214 आरोग्य केंद्रों को मंजूरी दी है। राज्यों की बात करें तो राजस्थान (295), यूपी (150), त्रिपुरा (22), उत्तराखंड (08), पश्चिम बंगाल (03), तेलंगाना (49), तमिलनाडू (104), पंजाब (02), पांडिचेरी (05), ओड़िशा (80), नागालैंड (16), मिजोरम (28), मध्यप्रदेश (60), हरियाणा (31), हिमाचल प्रदेश (49), चंडीगढ़ (05), दिल्ली (05), जम्मू कश्मीर (30), केरल (46), असम (14), गुजरात (23), गोवा (16), अरुणांचल (06), आंध्र प्रदेश (38) और अंडमान निकोबार में 15 आरोग्य केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
आयुष में ये राज्य पिछड़े
लोगों को आयुष उपचार देने के लिए केंद्र स्थापित करने में फिलहाल कुछ राज्यों की स्थिति ज्यादा खराब है। मंत्रालय के अनुसार मेघालय, झारखंड, लक्ष्यद्वीप में अभी तक एक-एक आरोग्य केंद्र को मंजूरी मिली है। जबकि बिहार, कर्नाटक, सिक्किम एवं दादर और नागर हवेली में एक भी केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव सरकार को नहीं मिला है।
किडनी की बीमारी से पा सकते हैं छुटकारा लेकिन खाने में शामिल करें हर्बल चीजें
गुर्दे से जुड़ी बीमारियों में जहां संतुलित आहार जरूरी है, वहीं आयुर्वेद के कई फार्मूले भी कारगर पाए गए हैं। इसलिए 'नेशनल किडनी फाउंडेशन एंड द एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशियन डाइटिक्स' ने गुर्दे के मरीजों के लिए 'मेडिकल न्यूट्रीशियन थैरेपी' की सिफारिश की है।
हेल्थ डेस्क: गुर्दे से जुड़ी बीमारियों में जहां संतुलित आहार जरूरी है, वहीं आयुर्वेद के कई फार्मूले भी कारगर पाए गए हैं। इसलिए 'नेशनल किडनी फाउंडेशन एंड द एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशियन डाइटिक्स' ने गुर्दे के मरीजों के लिए 'मेडिकल न्यूट्रीशियन थैरेपी' की सिफारिश की है। फाउंडेशन का कहना है कि यदि गुर्दा रोगियों को हर्बल पदार्थो से परिपूर्ण और बेहतर आहार मिले तो बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट मनीष मलिक कहते हैं कि यह सिफारिश महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि हाल में 'अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च' में एक भारतीय आयुर्वेदिक फार्मूले 'नीरी केएफटी' को गुर्दे के उपचार में उपयुक्त पाया गया। यह आयुर्वेदिक फार्मूला है लेकिन इसके इस्तेमाल से गुर्दा रोगियों में बड़ा सुधार देखा गया है। 'नीरी केएफटी' रक्त में सीरम क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड तथा इलेक्ट्रोलेट्स के स्तर में सुधार करता है। इसलिए आजकुल गुर्दा रोगियों द्वारा बड़े पैमाने पर इसे टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
नीरी केएफटी को 'एमिल फार्मास्युटिकल' द्वारा तैयार किया गया है। एमिल के अध्यक्ष कहते हैं कि इसमें पुनर्नवा नामक एक ऐसी बूटी है जो गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी ठीक करती है।
शिकागो स्थित 'लोयोला विश्वविद्यालय' के अध्ययनकर्ता डॉ. होली क्रमेर ने कहा कि ज्यादातर मरीजों को पता नहीं होता कि बीमारियों को नियंत्रित रखने में भोजन की क्या भूमिका है इसलिए अब आहार को गुर्दे की बीमारी के उपचार का हिस्सा बनाया जा रहा है।
'पांडिचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज' के प्रोफेसर एवं नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जी. अब्राहम भी इस शोध की पुष्टि करते हैं। उन्होंने एक शोध में पाया कि 42-77 फीसदी गुर्दा रोगी कुपोषण के शिकार थे।
दरअसल, गुर्दे की बीमारी के चलते वह पर्याप्त भोजन नहीं ले रहे थे। कुछ अपनी मर्जी से तो कुछ घरवालों की सलाह पर ऐसा कर रहे थे। अब्राह्म कहते हैं कि यदि ऐसे मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तथा उन्हें उचित पोषाहार मिले तो बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।
अगर आप भी किडनी की किसी बीमारी से जूझ रहे हैं तो ये इलाज हो सकता है कारगर
किडनी से जुड़ी बीमारियों में जहां संतुलित आहार जरूरी है, वहीं आयुर्वेद के कई फार्मूले भी कारगर पाए गए हैं. इसलिए ‘नेशनल किडनी फाउंडेशन एंड द एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशियन डाइटिक्स’ ने किडनी के मरीजों के लिए ‘मेडिकल न्यूट्रीशियन थैरेपी’ की सिफारिश की है. फाउंडेशन का कहना है कि यदि ऐसा रोगियों को हर्बल पदार्थो से परिपूर्ण और बेहतर आहार मिले तो बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है.
सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट मनीष मलिक कहते हैं कि यह सिफारिश महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि हाल में ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च’ में एक भारतीय आयुर्वेदिक फार्मूले ‘नीरी केएफटी’ को किडनी के इलाज में उपयुक्त पाया गया. यह आयुर्वेदिक फार्मूला है लेकिन इसके इस्तेमाल से ऐसे रोगियों में बड़ा सुधार देखा गया है. ‘नीरी केएफटी’ रक्त में सीरम क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड तथा इलेक्ट्रोलेट्स के स्तर में सुधार करता है. इसलिए आजकुल गुर्दा रोगियों द्वारा बड़े पैमाने पर इसे टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
नीरी केएफटी को ‘एमिल फार्मास्युटिकल’ द्वारा तैयार किया गया है. एमिल के अध्यक्ष कहते हैं कि इसमें पुनर्नवा नामक एक ऐसी बूटी है जो गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी ठीक करती है. शिकागो स्थित ‘लोयोला विश्वविद्यालय’ के अध्ययनकर्ता डॉ. होली क्रमेर ने कहा कि ज्यादातर मरीजों को पता नहीं होता कि बीमारियों को नियंत्रित रखने में भोजन की क्या भूमिका है इसलिए अब आहार को गुर्दे की बीमारी के उपचार का हिस्सा बनाया जा रहा है.
‘पांडिचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ के प्रोफेसर एवं नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जी. अब्राहम भी इस शोध की पुष्टि करते हैं. उन्होंने एक शोध में पाया कि 42-77 फीसदी गुर्दा रोगी कुपोषण के शिकार थे. दरअसल, गुर्दे की बीमारी के चलते वह पर्याप्त भोजन नहीं ले रहे थे. कुछ अपनी मर्जी से तो कुछ घरवालों की सलाह पर ऐसा कर रहे थे. अब्राह्म कहते हैं कि यदि ऐसे मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तथा उन्हें उचित पोषाहार मिले तो बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है.
किडनी की बीमारियों में हर्बल फार्मूले के साथ कारगर हैं ये तरीके
किडनी (गुर्दा) से जुड़ी बीमारियों में जहां संतुलित आहार जरूरी है, वहीं आयुर्वेद के कई फार्मूले भी कारगर पाए गए हैं। इसलिए 'नेशनल किडनी फाउंडेशन एंड द एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशियन डाइटिक्स' ने किडनी के मरीजों के लिए 'मेडिकल न्यूट्रीशियन थैरेपी' की सिफारिश की है। फाउंडेशन का कहना है कि यदि किडनी रोगियों को हर्बल पदार्थो से परिपूर्ण और बेहतर आहार मिले तो बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट मनीष मलिक कहते हैं कि, 'यह सिफारिश महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि हाल में 'अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च' में एक भारतीय आयुर्वेदिक फार्मूले 'नीरी केएफटी' को गुर्दे के उपचार में उपयुक्त पाया गया। यह आयुर्वेदिक फार्मूला है लेकिन इसके इस्तेमाल से किडनी रोगियों में बड़ा सुधार देखा गया है। 'नीरी केएफटी' रक्त में सीरम क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड तथा इलेक्ट्रोलेट्स के स्तर में सुधार करता है। इसलिए आजकल किडनी रोगियों द्वारा बड़े पैमाने पर इसे टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।'
नीरी केएफटी को 'एमिल फार्मास्युटिकल' द्वारा तैयार किया गया है। एमिल के अध्यक्ष कहते हैं कि, 'इसमें पुनर्नवा नामक एक ऐसी बूटी है जो किडनी की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी ठीक करती है।'
शिकागो स्थित 'लोयोला विश्वविद्यालय' के अध्ययनकर्ता डॉ. होली क्रमेर ने कहा कि ज्यादातर मरीजों को पता नहीं होता कि बीमारियों को नियंत्रित रखने में भोजन की क्या भूमिका है इसलिए अब आहार को किडनी की बीमारी के उपचार का हिस्सा बनाया जा रहा है।
'पांडिचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज' के प्रोफेसर एवं नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जी. अब्राहम भी इस शोध की पुष्टि करते हैं। उन्होंने एक शोध में पाया कि 42-77 फीसदी किडनी रोगी कुपोषण के शिकार थे।
दरअसल, किडनी की बीमारी के चलते वह पर्याप्त भोजन नहीं ले रहे थे। कुछ अपनी मर्जी से तो कुछ घरवालों की सलाह पर ऐसा कर रहे थे। अब्राह्म कहते हैं कि यदि ऐसे मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तथा उन्हें उचित पोषाहार मिले तो बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।