नई दिल्ली, 4 अप्रैल (आईएएनएस)| विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर सार्वभौमिक स्वास्थ्य का नारा दिया है। डल्यूएचओ की यह पहल आयुष चिकित्सा को बढ़ावा देने वाली है। रविवार को दुनिया भर के देशों में आयुष पर चर्चा होगी। यही नहीं आयुष से जुड़े स्वदेशी शोधों को भी अब विदेशों तक पहुंचाने की तैयारी हो चुकी है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 का लक्ष्य भी सबको किफायती दरों पर स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना है। इस नीति में आयुष चिकित्सा पद्धतियों को भी बढ़ावा देने की बात कही गई है। केंद्र सरकार के वैज्ञानिक महकमे भी इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।
वैज्ञानिक संस्थान आयुष पद्धतियों से नई दवाएं विकसित कर रहे हैं जो मधुमेह और गुर्दे जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए कारगर हैं। कुछ समय पूर्व वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा विकसित की गई मधुमेह रोधी आयुर्वेदिक दवा बीजीआर-34 आज मधुमेह के उपचार में बेहद सफल साबित हुई है तथा इसे सरकार देश भर के डेढ़ लाख वेलनेस केंद्रों के जरिये आम लोगों तक पहुंचाने में जुटी है।
लखनऊ स्थित सीएसआईआर की दो प्रयोगशलाओं सीमैप एवं एनबीआरआई ने आयुर्वेद के फार्मूले से इसे विकसित किया है। लेकिन इसे आधुनिक पद्धति की दवाओं की तर्ज पर विकसित किया गया है। इसमें छह जड़ी-बूटियां हैं जो मधुमेह को नियंत्रित करने के साथ-साथ रक्त में एंटी आक्सीडेंट की मात्रा भी बढ़ाते हैं। जिन्हें मधुमेह की अभी शुरुआत हुई है, उनके मधुमेह को नियंत्रित करने में यह कारगर साबित हुई है।
दरअसल केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने 2016 में मधुमेह की रोकथाम के लिए आयुर्वेदिक दवाओं से उपचार का एक प्रोटोकाल जारी किया है। इसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक केंद्रों में लागू किया जा रहा है। अब उप केंद्रों (वेलनेस सेंटर) में भी लागू किया जाएगा। ताकि लोगों को कम कीमत पर उपचार मिल सके। इसमें शामिल दारूहरिद्रा, गिलोय, गुड़मार, करेला आदि एंटी डाइबिटिक तत्वों से भरपूर हैं।
ट्रेडिशनल कंप्लीमेंट्ररी मेडिसिन में प्रकाशित शोध के अनुसार, बीजीआर-34 मधुमेह के नियंत्रण के साथ-साथ पचास फीसदी मरीजों में हार्ट अटैक के खतरे को भी कम करती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया में करीब 42 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं जबकि भारत में 7.29 करोड़ लोग इसकी जद में हैं।