अनुवांशिकता और ल्युकोडर्मा (सफ़ेद दाग)
आजकल के इस आधुनिक समय मे दिन- प्रतिदिन की जीवनशैली ( Life style) ,तनाव,विरुद्ध आहार-विहार , अनिद्रा आदि के कारण विभिन्न रोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है जैसे मधुमेह( Diabetes ), उच्चरक्तचाप (Hypertension), सफेद दाग ( Leucoderma ) आदि ।
सफेद दाग एक प्रकार का त्वचा का रोग है जिसे सामान्यतः ल्युकोडर्मा ( Leucoderma) या विटिलिगो ( Vitiligo ) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें त्वचा में स्थित मेलानोसाइट् कोशिकायें ( Melanocyte cells) नष्ट होने लगती हैं जो मेलेनिन पिगमेंट( Melanin pigment ) बनाती हैं। इससे त्वचा में काला रंग बनना कम हो जाता है और त्वचा पर सफेद दाग बनने शुरू हो जाते हैं। दुनिया भर की लगभग 0.5% से 1% आबादी ल्युकोडर्मा से प्रभावित है ।लेकिन भारत में इससे प्रभावित व्यक्तियों की आबादी अलग-अलग शहरोँ में लगभग 8% तक है।सफ़ेद दाग बनने के कई कारण होते हैं जिनमें से अनुवांशिक कारण भी एक है । सफेद दाग से प्रभावित व्यक्तियों के बच्चों में सफेद दाग होने का खतरा 6% से 8% तक होता है। सफेद दाग बनने की प्रक्रिया की रफ्तार अलग अलग वयक्तियों में भिन्न होती है। किसी व्यक्ति मे सफेद दाग धीरे-धीरे बनते हैं और किसी व्यक्ति मे तेजी से बनते हैं। ये सफेद दाग शरीर के किसी भी भाग में बन सकते हैं जैसे चेहरा , हाथ, पैर, होंठ या गुप्तांग तथा किसी भी आकार (shape) या परिमाण ( size) के हो सकते हैं।
सफेद दाग (ल्यूकोडर्मा ) होने के मुख्य कारण निम्न हैं।
1. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity ) का ठीक से कार्य न करना ।
2. आनुवंशिकता --- माता-पिता से बच्चों में यह बीमारी आ सकती है ।
3. पाचन तन्त्र अथवा यकृत( Liver ) का ठीक तरह से कार्य न करना ।
4. विरूद्ध आहार - जैसे मांस या मछली खाने के बाद दूध का सेवन करना ।
5. पोषक तत्वों का अभाव - शरीर में विटामिन ( Vitamins ), मिनरल्स (Minrals) या अन्य पोषक तत्वों (Nutrients) की कमी होना ।
6. व्यस्त जीवनशैली , मानसिक तनाव ( Stress), अवसाद( Depression ) आदि ।
7. कृमि --- आँतो में कृमि ( intestinal worms ) होना ।
आनुवंशिकता का सफेद दाग (ल्युकोडर्मा) रोगियों पर प्रभाव --
ऐसा देखा गया है कि कुछ सफेद दाग( ल्युकोडर्मा ) से पीड़ित व्यक्ति के बच्चों में भी सफेद दाग उत्पन्न हो जाते हैं।हालांकि सफेद दाग से प्रभावित व्यक्तियों के बच्चों में सफेद दाग होने का खतरा लगभग 6% से 8% तक होता है लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है कि जो सफेद दाग से पीड़ित हैं उन सभी के बच्चों को भी सफेद दाग हो । ऐसे परिवार उचित चिकित्सीय परामर्श एवं आहार- विहार का पालन करके बच्चों में सफेद दाग होने से रोक सकते है। समाज में ऐसे परिवारों से भेदभाव किया जाता है जो कि उचित नहीं है।कुछ लोगों में यह भी भ्रम है कि सफ़ेद दाग संक्रामक रोगों की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो सकता है जो कि बिलकुल असत्य है।
सफेद दाग के व्यक्ति को शारीरिक समस्या नही होती किन्तु इसके मानसिक एवं सामाजिक प्रभावों को देखा गया है।सफेद दाग से पीड़ित लड़के - लडकियों के विवाह में परेशानी होना एक बड़ी समस्या है।कई बार विवाह से पहले सफेद दाग का होना छुपाया जाता है और बाद में पता चलने पर वैवाहिक जीवन में समस्या होती है ।समाज मे व्याप्त सफेद दाग से जुड़े नकारात्मक दृष्टिकोण में सुधार कर हमें पीड़ित व्यक्तियों का मनोबल बढ़ाना चाहिए और उनसे सामान्य व्यक्तियों की भाँति ही व्यवहार करना चाहिए।
उपचार
आधुनिक चिकित्सा पद्धति(Modern medical science) के अनुसार यह एक असाध्य रोग है परंतु आयुर्वेदिक चिकित्सा और उचित आहार-विहार से सफेद दाग को ठीक किया जा सकता है।आयुर्वेदिक चिकित्सा ही इस रोग में पूर्णतयः लाभकारी है।
सफेद दाग के इलाज के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखें -
1. भोजन --- खट्टे - चटपटे और देर से पचने वाले भोजन का सेवन न करें। जैसे दही , नींबू, खट्टे रस वाले फल आदि का सेवन न करें । केला, चीकू, तरबूज़ , गेहूँ, चावल, सब्जियाँ आदि का सेवन कर सकते हैं। ताजे, स्वच्छ एवं प्राकृतिक वस्तुओं का ही प्रयोग करें ।
2. संतुलित एवं पोषक आहार का सेवन करें ।आहार का नियम अनुसार सेवन करें, विरुद्ध आहार का त्याग करें ।
3. योग - प्राणायाम एवं व्यायाम करें जिससे शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहें।
4. स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर स्वस्थ रहता है।
5. तंबाकू तथा शराब आदि नशे की वस्तुओं का सेवन ना करें क्योंकि यह अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचाते हैं।